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कब तलक,
जलती रहेंगी
रैलियों में
मोम बत्तियां।
कब तलक,
दिखती रहेंगी
“वी वांट जस्टिस” की
ये तख्तियां।
कब तलक,
गूंजेगी भला
बेटियों की सिसकियां ।
कब तलक,
हैवानियत की,
चलती रहेगी मनमानियां।
कब तलक,
वहशियों को
ढंकती रहेगी,
जाति की छतरियां।
कब तलक,
दोगे हिसाब
अपने अपने सूबे से।
तुझसे कम मेरे सूबे में,
बस इसी इस मंसूबे से।
कब तलक,
फर्क दिखेगा,
गुजरे हुए
कल और आज में।
कब तलक
महफूज होंगी,
बेटियां समाज में।।
@ इंजी.
अमीरउल्लाह खान
सहायक अभियंता (सतर्कता)
सीएसपीडीसीएल, रायगढ़

