Home विविध शिव के अर्धनारीश्वर अवतार से ब्रम्हा को मिली सृष्टि रचना की प्रेरणा

शिव के अर्धनारीश्वर अवतार से ब्रम्हा को मिली सृष्टि रचना की प्रेरणा

by SUNIL NAMDEO EDITOR

प्रस्तुति: सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी

सावन का महीना हो या कोई साधारण दिन, भगवान शिव और शक्ति को प्रसन्न करने के लिए महादेव के अर्धनारीश्वर स्वरूप की आराधना की जाती है। भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप के आधे हिस्से में पुरुष रूपी शिव का वास है, जबकि आधे हिस्से में स्त्री रूपी शिवा, अर्थात शक्ति, का वास है। अर्धनारीश्वर स्वरूप पुरुष और स्त्री सिद्धांतों की अविभाज्यता का प्रतीक है।

                छान्दोग्य उपनिषद में वर्णित है कि सृष्टि के प्रारंभ में कुछ भी नहीं था, केवल सत था और वही ब्रह्मा हैं। ब्रम्हा अनेक प्रकार से प्रकट होने की असीम शक्ति से सम्पन्न हैं। ईश्वर के ये रूप-स्वरूप ऐसे ही नहीं हैं, बल्कि प्रत्येक रूप का अपना विशेष महत्व है। ईश्वर के इन्हीं विविध रूपों में एक रूप भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप है। शिव और शक्ति के योग से बना यह स्वरूप नर और नारी की समानता का सूचक माना गया है, इसलिए अर्धनारीश्वर रूप सदैव वंदनीय रहा है।

शिवजी के अर्धनारीश्वर रूप की 3 प्रमुख कहानियां

ब्रम्हा को प्रेरणा

सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी के अनुसार, एक पौराणिक कथा में ब्रम्हा को सृष्टि निर्माण का जिम्मा सौंपा गया था। जब ब्रम्हा ने सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया, तो उन्हें यह विचार आया कि उनकी सारी रचनाएं जीवनोपरांत नष्ट हो जाएंगी। इस समस्या के समाधान हेतु ब्रम्हा, भगवान शिव के पास पहुंचे। ब्रम्हा के अनुरोध पर शिव ने अर्धनारीश्वर का रूप धरा। उनके शरीर के आधे भाग में साक्षात शिव और आधे भाग में स्त्री रूपी शिवा, अर्थात शक्ति, नजर आईं। इस स्वरूप को देखकर ब्रम्हा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा मिली। इस प्रकार, शिव से शक्ति अलग हुईं और उन्होंने अपने मस्तक के मध्य भाग से एक अन्य शक्ति को प्रकट किया। यह शक्ति कालांतर में राजा दक्ष के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्मी, जिससे सृष्टि की शुरुआत मानी जाती है।

                     यह सर्वविदित तथ्य है कि स्त्री और पुरुष के मिलन से ही शिशु का जन्म होता है। जीव विज्ञान के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति में 46 गुणसूत्र होते हैं, जिनमें से 23 गुणसूत्र माता के तथा 23 पिता के होते हैं। कभी-कभी इन गुणसूत्रों में असंतुलन हो जाता है, जिससे स्त्री में पुरुषत्व के गुण और पुरुष में स्त्रीत्व के गुण दिखाई देने लगते हैं। इस अवधारणा को, जिसे विज्ञान आज मान रहा है, हमारे पौराणिक ग्रंथों ने अर्धनारीश्वर के रूप में बहुत पहले प्रतिपादित किया है।

  1. माता पार्वती की प्रार्थना

शिव के अर्धनारीश्वर अवतार के बारे में एक अन्य पौराणिक कथा है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे शिव में ही समाहित होना चाहती हैं और इसके लिए वे अनुमति दें। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और अर्धनारीश्वर स्वरूप का अवतरण हुआ।

  1. राक्षस अंधक से रक्षा

स्कन्द पुराण के अनुसार, एक बार राक्षस अंधक ने माता पार्वती को पकड़ लिया। उस समय विष्णु ने उन्हें बचाया और अपने निवास स्थान पर ले आए। लेकिन, राक्षस ने वहां भी उनका पीछा किया, तब माता पार्वती ने अर्धनारीश्वर रूप प्रकट किया। उनके आधे पुरुष रूप को देखकर अंधक ने उनका पीछा करना छोड़ दिया। इन कहानियों से यह स्पष्ट होता है कि भगवान शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप न केवल पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और समाज में पुरुष और स्त्री के संतुलन और समानता का प्रतीक भी है।

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