विवाह लड़के की संपत्ति से किया है तो लड़की को चाहिए भरण पोषण





रायगढ़ (सृजन न्यूज)। वरिष्ठ अधिवक्ता एसके घोष बताते हैं कि विवाह नामक संस्था टूट रही है। सामाजिक पंचायतें और संगठन वैवाहिक मामलों के निराकरण में विफल साबित हो रहे हैं। समय पर विवाह नहीं होने से लड़का और लड़की दोनो का जीवन खराब हो रहा हैं। कुटुम्ब न्यायालय में वैवाहिक मामलों की बाड़ सी आ चुकी हैं, क्षमता से अधिक मामले अदालतों में चल रहे हैं।
भारत में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 भरण पोषण का कानून बहुत पुराना है। नए कानून की धारा 144 में पुराने कानून को दोहराया गया हैं। पत्नी, बच्चे और माता-पिता का भरण पोषण करना पुत्र/पति का कानूनी दायित्व है। कुटुम्ब न्यायालय के मामले बताते हैं कि लड़की का विवाह जब हुआ था, तब वह 30 से 35 वर्ष की थी और लड़के का जब विवाह हुआ था, तब वह 35 से 40 वर्ष का था। अधिक उम्र में विवाह के होने का दूसरा अर्थ है कि विवाह की सफलता की संभावना बेहद कम हैं। परिवार में दोनों के मध्य विचारों का सामंजस्य अक्सर कठिन हो जाता है। कानून लिंग भेद नहीं करता है। लड़का और लड़की दोनों एक समान हैं, लेकिन धारा 125 या धारा 144 इसका अपवाद हैं। पति का भरण पोषण करने की कानूनी जिम्मेदारी पत्नी पर नहीं हैं। पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम हैं, सरकारी नौकरी करती हैं तो पति उससे भरण पोषण हासिल नहीं कर सकता है। पत्नी की मासिक आय 1 लाख 50 हजार हैं और पति की आय 30 हजार रू0 महिना हैं तो इस अंतर को कानूनी रास्ते पर चलकर कम या समान नहीं किया जा सकता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144 में सबसे बड़ा संकट नौकरी पेशा के लिए खड़ा हैं जिसे पत्नी को कुल आय का 25 प्रतिशत देना ही है। पत्नी एवं बच्चे दोनों को 33 प्रतिशत देना ही है।
ससुराल से रूठकर मायके चली गई पत्नी सबसे पहला काम करेगी तो वह एक वकील से संपर्क करेगी। इसके बाद पुलिस और फिर अदालत में मामला आ जायेगा। अदालत में मामला आता हैं तो दोनो पक्ष एक दूसरे के खिलाफ बोलने लग जाते हैं। कटुता बढ़ते चली जाती हैं, मामला असाध्य हो जाता हैं। भरण पोषण कानून के कारण एक उद्योग खड़ा हो गया हैं और कुछ लोग व्यापारी बन गए हैं जो स्वयं का केवल लाभ देखते हैं। नौकरी पेशा पति हैं तो उसकी सम्पत्ति से अधिक से अधिक वसूली कानून और न्याय के रास्ते की जाती है। इससे महिला को लाखों रूपये मिलते हैं और कुछ को लाभ होता हैं।
बीएनएसएस की धारा 144 का मुकदमा लड़ते समय बड़ी-बड़ी गलतियाँ पति पक्ष सें होती है। कानून क्या कहता हैं, बचाव कैसे करना हैं, इस पर ध्यान देने के बजाए पति पक्ष महिला की कहानी को झूठा साबित करने में लग जाता है जिसके चलते पति पक्ष मुकदमा हार जाता हैं। महिला आरोप लगाती है कि दहेज मांगते थे, हर समय ताना मारते थे। खाना-पीना नहीं देते थे, मारपीट करते थे। देवर या अन्य पुरुष रिश्तेदार बुरी नजर रखते थे, इसलिए ससुराल में रहना कठिन है। ठीक इसका उल्टा साबित करने में पति पक्ष लग जाता हैं और महिला पर नए-नए आरोप लगाता चला जाता है। दोनो पक्ष अपने कानूनी सलाहकार के अनुसार जैसा समझाते हैं, पक्षकार करते चले जाते हैं। बीएनएसएस की धारा 144 में एक ऐसी महिला भरण पोषण पाने की हकदार हैं जो की स्वयं का भरण पोषण करने में असमर्थ हैं। पति पक्ष को इस विषय को समझना जरूरी हैं। महिला स्वयं का भरण पोषण करने में अक्षम क्यों है? महिला के माता पिता ने भरण पोषण करने से मना क्यों कर दिया हैं ? भरण पोषण आवेदन का जवाब पति पक्ष द्वारा देते समय एक बड़ी गलती की जाती है। इसमें महिला पर तरह-तरह के आरोप लगाए जाते हैं। आरोप का जवाब आरोप से दिया जाता है। ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाता है। पति पक्ष को ऐसा नहीं करना चाहिए। अदालत में पति को यह साबित करना चाहिए कि पत्नी अपनी मनमर्जी से स्वयं की इच्छा से मायके में रह रही है और वह स्वयं का भरण पोषण करने में सक्षम हैं। मायका पक्ष आर्थिक रूप से मजबूत है। मायका पक्ष की धन संपत्ति में महिला हिस्सेदार है। महिला पढ़ी-लिखी है और व्यवसायिक पाठ्यक्रम किए हैं, धनराशि अर्जित करने की पूर्ण योग्यता रखती हैं। महिला मायके में बैठी क्यों हैं ? रोजगार की तलाश क्यों नहीं कर रहीं हैं? महिला की युक्तियुक्त जरूरत क्या है ? महिला अपने अधिवक्ता को फीस अदा कर रहीं हैं या सरकारी व्यय से अधिवक्ता पैरवी कर रहा है ?
कानून यह नहीं कहता हैं कि एक पूर्ण शिक्षित महिला व्यवसायिक योग्यता रखने वाली मायके में बैठी रहे और भरण पोषण प्राप्त करती रहे। भरण पोषण अंतहीन समय के लिए नहीं दिया जा सकता हैं। आखिर महिला को कब तक भरण पोषण चाहिए ? एक या 5 वर्ष तक चाहिए, प्रश्न तो उठाना चाहिए। एक महिला मायके में जाकर बैठ गई है और पति से भरण पोषण की मांग कर रही है तो पति को चाहिए कि वह पत्नी को उसका धर्म याद दिलाए, दाम्पत्य संबंधों की स्थापना पर जोर दे और दाम्पत्य संबंध स्थापित करें। कानून यह नहीं कहता है कि वैवाहिक मामला अदालत में चल रहा है तो पति एवं पत्नी दाम्पत्य संबंध स्थापित नहीं कर सकते हैं ? अदालत में सवाल उठना चाहिए कि ऐसी पत्नी जो कि पति के साथ दाम्पत्य संबंध स्थापना में रुचि नहीं रखती है, भरण पोषण की हकदार कैसे हो सकती हैं ? इस विषय पर कानून मौन क्यों हैं ? पुरूष को अपने अधिकार का त्याग नहीं करना चाहिए और दाम्पत्य संबंध की स्थापना करने का प्रयास करना चाहिए। विवाह लड़का और लड़की का होता हैं, यह केवल सिद्धांत की बात हैं। लड़की विवाह तो लड़के की धन संपत्ति से करती है, लड़के की सरकारी नौकरी से करती हैं, यह हकीकत हैं। इसलिए वह भरण पोषण की मांग तो करेगी।
अदालतों के पुराने फैसले को देखें तो यह तय है कि पुरूष को भरण पोषण अपनी पत्नी को देना है। भरण पोषण राशि में कमी संभव है, लेकिन भरण पोषण तो देना हैं। कानून पुराना है और सामाजिक परिवेश बदल चुका है। अदालत के सामने जैसी परिस्थितियां दोनों पक्षों की दिखाई देगी, वैसा फैसला सामने आयेगा। भरण पोषण के मामलों में लड़ने का तरीका बदलेगा तो अदालत का फैसला भी बदलेगा। पुरूष पक्ष की एक गलती और दिखाई देती हैं। विवाह होता हैं तो कभी भी धनराशि को अपने खाते में नहीं प्राप्त करें। पत्नी की शैक्षणिक योग्यता की समस्त दस्तावेज की फोटो कापी अपने पास में रखें। समय-समय पर पत्नी के बैंक खातों में धनराशि का अंतरण करते रहें। एक ऐसी बीमा पॉलिसी को खरीदे जिसमें दोनों का एक साथ बीमा कवर मिलता हैं। पत्नी को जाति समाज संगठन में सक्रिय रखें और स्वरोजगार की व्यवस्था कर दें। अधिक से अधिक दस्तावेज अपने पास में रखे जो कभी भी काम आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त अनुभवी और विशेषज्ञ अधिवक्ता को नियुक्त करें। सामाजिक परिवेश बदल चुका हैं तो पुराने तरीको से मामले में पैरवी करके अच्छा नतीजा नहीं पाया जा सकता है। आपको अपने अधिवक्ता को प्रारंभ में ही पूरी कहानी विस्तृत में बतानी चाहिए।

