रायगढ़ (सृजन न्यूज़)। हाल ही में एक घटना में एक महिला अपने बच्चों के साथ पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज करवाने हेतु कार्यालय दर कार्यालय भटकते हुये नाटकीय प्रदर्शन करती रही। एक दूसरी घटना में नामचीन बदमाश ने जेल से जमानत पर बाहर आने के बाद जुलूस निकालकर शक्ति प्रदर्शन किया। पूर्व में भी कतिपय घटनाओं में इसी तरह के लोगों ने अपनी बात मनवाने या अपनी हैसियत को दर्शाने हेतु लीक से हटकर नाटकीय व हंगामाखेज प्रदर्शन का रास्ता अख्तियार किया था। समाज में तेजी से बढ़ती हुई इस प्रवृत्ति के पीछे के कारणों का विश्लेषण करने जरूरत है।

प्रथम दृष्टया ऐसा समझा जाता है कि सोशल मीडिया की पत्रकारिता का झुकाव नाटकीयता को चर्चित करके टीआरपी बटोरने में अत्यधिक तीव्रता के साथ बढ़ा है। अतः सोशल मीडिया के माध्यम से चर्चित होकर अपने पक्ष में दबाव बनाने की मंशा ने इस तरह के प्रदर्शनों की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। इस सतही आकलन से परे सूक्ष्मता से विश्लेषण करने पर इस प्रवृत्ति के पीछे कुछ व्यवस्थागत, सामाजिक व राजनीतिक कारण भी सामने आते हैं। दरअसल हमारे लोकतंत्र में राजनेताओं, प्रशासनिक अफसरों एवं न्यायपालिका ने मिलजुल के जो रंग भरा है, वह न केवल अन्यायपूर्ण प्रतीत होता है, वरन पूरे तंत्र के प्रति आम जनता में गहरा विक्षोभ और अविश्वास पैदा करने वाला है। तंत्र के प्रति इस गहरे अविश्वास के कारण ही पूरी तरह अनैतिक व नाजायज माँग को लेकर खड़े होने वाले प्रत्येक तबके को पीड़ित पक्ष की श्रेणी रखकर उसे सहानुभूति का पात्र बना दिया जाता है।

नई पत्रकारिता अक्सरहाँ जनता व सरकारी तंत्र में टकराव खोज कर शासन-प्रशासन को कटघरे में खड़ा करने के लिये बेहद तत्पर रहती है। मीडिया की यही तत्परता छद्म प्रदर्शनकारियों को पीड़ित व सताये हुये लोगों की पंक्ति में खड़ा कर उन्हें अपनी बात रखने हेतु अराजकता की सीमा तक जाने की छूट दे देती है। पहले से जन-संदेह के दायरे में खड़े जिला व पुलिस प्रशासन पर इस बात का अत्यधिक दबाव होता है कि कोई घटना बवाल का रूप ले उससे पहले ही उसे निर्मूल कर दिया जाये। इन तथ्यों के असर ने विपक्षी राजनीतिक दलों के प्रदर्शन के तौर-तरीकों में नाटकीयता को प्रविष्ट कर दिया। उसी का अनुकरण अब हर तबका करने लगा है। इधर राजनीति का जिस तेजी से अपराधीकरण हुआ है, उसका एक विपरीत असर यह हुआ है कि लम्पट वर्ग किसी न किसी राजनीतिक दल का झंडा थामकर अपने गैरकानूनी क्रियाकलापों के विरुद्ध होने वाली कार्यवाही को राजनीतिक षडयंत्र निरूपित करके स्वयं को एक योद्धा की तरह प्रस्तुत करने लगा है।

बहरहाल, जरूरत इस बात की है कि सभी पक्ष आत्म विश्लेषण करें और इस तरह की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करें अन्यथा यह प्रवृति अंततः समाज के सभी वर्गों के लिये आत्मघाती सिद्ध होगी।