रायगढ़ (सृजन न्यूज)। तीन दशक पहले जनहित के उद्देश्यों को लेकर ग्राम बनोरा में अघोर गुरु ट्रस्ट की स्थापना की गई। अघोरेश्वर
के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का भावना ही इस आश्रम की स्थापना का मूल उद्देश्य है। यह बातें बाबा प्रियदर्शी राम ने 31 वे स्थापना दिवस पर आशीर्वचन के दौरान कही।
बाबा प्रियदर्शी राम ने तीन दशक पहले संसाधनों के अभावों का जिक्र करते हुए कहा कि मानव के दृढ़ संकल्प के सामने कोई बाधा नहीं आ सकती। अघोर गुरु ट्रस्ट बनोरा की स्थापना शाखाओं का विस्तार एवं यहां चल रही मानव सेवा गतिविधियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि तीन दशक पहले यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव था। आश्रम निर्माण के लिए आवश्यक संसाधन नहीं थे, लेकिन अघोरेश्वर की प्रेरणा उनके द्वारा स्थापित उद्देश्यों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए दी गई दृढ़ संकल्प की प्रेरणा से धीरे-धीरे मार्ग प्रशस्त होता गया और स्थानीय लोगों द्वारा की गई अद्भुत सहायता की वजह से सभी शाखाओं में जन सेवा का कार्य निरंतर जारी है व आगे भी यह जारी रहेगा। मनुष्य के कर्म में सेवा का भाव हो तो सफलता सुनिश्चित हो जाती है। सेवा के मूल मंत्र को आधार बनाकर ही जो स्थापना का बीज आज के दिन बनोरा मे रोपा गया था उसकी जड़ें 4 राज्यों के 11 शाखाओं तक विस्तारित हो चुकी है। सभी में मानव सेवी गतिविधियां निरंतर जारी है। बनोरा वासियों के सहयोग को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।
संस्था के इस मुकाम तक के सफर का मार्मिक संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने कहा कि 31 वर्ष पूर्व स्थापित इस आश्रम का बहुत ही विषम परिस्थितियों में विस्तार हुआ। स्थापना की नींव में बनोरा वासियों का योगदान छिपा है। आसपास के आस्थावान लोगों के जीवन में बदलाव संस्थान की सबसे बड़ी उपलब्धि है। स्थापना के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा शिक्षा को प्राथमिक आवश्यकता बताते जाने पर संस्था ने शिक्षा को प्राथमिकता दी गई। ग्रामीण बच्चों की छिपी हुई प्रतिभा को उभारने के उद्देश्य से खोले गए विद्यालय का परिणाम आज सार्थक दिखाई पड़ रहा। स्कूली बच्चों के लिए आवश्यक गुणों पर प्रकाश डालते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा कि अनुशासन का जीवन में बड़ा महत्व है। स्कूली जीवन को मनुष्य जीवन का आधार बताते हुए उन्होंने कहा कि अनुशासन बद्धता जीवन के लिए मजबूत आधार तैयार करती है। कुसंग दोष को सबसे बड़ा दुर्गुण बताते हुए कहा कि जीवन में अच्छी संगति लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनती है।
नशा सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति को चिंतनीय विषय बताते हुए बाबा ने कहा कि नशापान आत्महत्या करने जैसा है। नशाखोरी जीवन को खोखला करती है। इस वजह से मनुष्य अपने निर्धारित लक्ष्य से दूर हो जाता है। बच्चों को आश्रम लाने की सलाह देते हुए कहा कि अच्छी संगत के साथ बड़ों और गुरुजनों का सम्मान करने वाला छात्र सरस्वती का सच्चा उपासक होता है। अनुशासित तरीके से हासिल की गई शिक्षा आत्मनिर्भर बनाती है और शिक्षित व्यक्ति कभी याचक नहीं बनता। साथ ही बाबा ने पालकों को जिम्मेदारी से भी अवगत कराते हुए कहा कि बच्चों को अच्छा वातावरण उपलब्ध कराना अभिभावकों का कर्तव्य है। बच्चों की स्कूली गतिविधियों पर ध्यान रखना अति आवश्यक है। उनके लालन पालन के प्रति लापरवाही से उनका भविष्य प्रभावित हो सकता है, इसलिए माता-पिता को बच्चों का प्रथम शिक्षक बताया गया है। बच्चे अपने माता-पिता का अनुशरण करते हैं। माता-पिता के संस्कारों का भी बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। बच्चों को अच्छा संस्कार देना सबसे बड़ा कार्य है। बच्चे देश का भविष्य हैं और कर्णधार माने जाते हैं। राष्ट्र निर्माण की इस छोटी इकाई को मजबूती देना माता-पिता का कर्तव्य है। अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा लोगों के जीवन में बदलाव का बड़ा जरिया बना और आश्रम ने सकारात्मक माहौल उपलब्ध कराया।
इसका लाभ उठाने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने से मनुष्य की समझ विकसित होती है, वह आत्मनिर्भर बनता है। भौंरा और गौरेला का दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि अच्छे संग से जीवन परिवर्तित होता है। इस परिवर्तन से मनुष्य आत्म मग्न होकर परम आनंद की अनुभूति करता है। जीवन में परम आनद की अनुभूति के लिये अच्छे संग को दोहराते हुए कहा कि अच्छी संगत मनुष्य को अधिकारी बनाता है। जीवन का आधा सफर तय कर चुके लोगों को अनिवार्य रूप से आश्रम जाना चाहिए ताकि जीवन को निराशा ना घेर सके। यह आश्रम लोगों को सदैव आत्मानंद की अनुभूति के साथ सद्कार्यों के लिए प्रेरित करता रहेगा। सुसंग का लाभ बताते हुए कहा कि अच्छी संगत से जीवन महक उठता है। जीवन से भटकाव दूर हो जाता है। आम आदमी की तुलना में एक संत को जल्दी परम आनंद की अनुभूति होने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि जैसे चकोर पक्षी एकाग्रचित्त होकर चंद्रमा को देखते हुए भाव विभोर हो उठता है, जबकि चंद्रमा को सभी देखते हैं, लेकिन चकोर जैसी एकाग्रता किसी दूजे में नहीं है। बहुत से लोग भागवत कथा सुनते हैं, लेकिन एकाग्र भाव से सुनने वाला आनंद की अनुभूति कर पाता है। ईश्वर द्वारा बनाया यह संसार गुण अवगुण दोनों से मिलकर बना है। अवगुणों के परित्याग से जीवन का निर्माण होता है। नशा छोड़ने हेतु आश्रम में निर्मित होने वाली दवा के खुराक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि नशा के विरुद्ध आश्रम का प्रयास निरंतर जारी है। धर्म मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करता है। पागलपन की अवस्था और अनभिज्ञता में किए गए कार्य को अक्षम्य बताते हुए कहा कि मनुष्य सभी प्राणी से श्रेष्ठ है। मध्यम वर्गीय लोगों के द्वारा अपने अर्जित धन से बचाकर दान देने की परंपरा को अश्वमेज्ञ यज्ञ के दौरान आधा सोने के शरीर वाले नेवले के दृष्टांत से जोड़ते हुए बाबा ने कहा कि यह संस्था मध्यम वर्गीय लोगों के सहयोग से चल रही है। क्षेत्रीय जनों से मिल रहे सहयोग को उन्होंने महान बताया। बाबा प्रियदर्शी राम ने यह भरोसा दिलाया कि लोगों से मिलने वाले सहयोग का पाई-पाई परमार्थ के कार्य में लगाया जाता है।
ईश्वर का सुमिरन है हर समस्या का निदान
जीवन भर सुख की तलाश में लगा मनुष्य ईश्वर का स्मरण भूल जाता है । ईश्वरीय विधान को भूलते ही मनुष्य लोभ स्वार्थ क्रोध ईर्ष्या के भंवर जाल में फंस कर रह जाता है। यही उसके दुखों का कारण बन जाता है। भगवान का नियमति सुमिरन न केवल उसे जीवन की तमाम बुराइयों से दूर रखता है, बल्कि दुखो को पैदा नहीं होने देता।
ज्ञान से आती है जीवन में स्थिरता
ज्ञान का बोध जीवन से अज्ञानता के अंधकार को दूर करता है। ज्ञान के जरिए मनुष्य अपनी कमजोरियों को दूर कर धर्म और अधर्म के भेद को समझता है। धर्म और अधर्म के मध्य अंतर समझने वाला मनुष्य ही बुद्धिमान होता है। राह चलती बैल धक्का मारती है। आंधी तूफान से नुकसान होने पर मनुष्य सहन कर लेता है, लेकिन उस पर मुकदमा दायर नहीं करता।
घासीराम और अमृत लाल की दान में दी गई जमीन है ट्रस्ट की बुनियाद
अघोर गुरु पीठ ट्रस्ट बनोरा की नींव घासीराम और अमृत लाल द्वारा दान दी गई जमीन पर रखी गई है। ट्रस्ट प्रबंधन की ओर से इनके परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए दोनों ही दानदाताओं के योगदान का पुण्य स्मरण किया गया। अमृत लाल और घासीराम का योगदान समाज के लिए अनुकरणीय है। सेवा की यह बुलंद ईमारत इनके द्वारा दान दी गई जमीन पर खड़ी है।