
जशपुरनगर (सृजन न्यूज)। सन्ना रोड में पाठक परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान श्रद्धालु जमकर थिरके। वहीं, पूरा परिसर भगवान श्रीकृष्ण के जयकारे तथा नंद के आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की जय से गुंजायमान हो उठा। कथा के दौरान कथा वाचक आचार्य अनिरुद्ध शिवानंद महाराज ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की महत्ता पर प्रकाश डाला।


उन्होंने कहा कि जब-जब धरा पर अत्याचार, दुराचार, पापाचार बढ़ा है, तब-तब प्रभु का अवतार हुआ है। प्रभु का अवतार अत्याचार को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए होता है। जब धरा पर मथुरा के राजा कंस के अत्याचार अत्यधिक बढ़ गए, तब धरती की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने देवकी माता के अष्टम पुत्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया। इसी प्रकार त्रेता युग में लंकापति रावण के अत्याचारों से जब धरा डोलने लगी, तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने जन्म लिया। ऐसे तमाम प्रसंग श्रोताओं को सुनाएं, जिसे सुनकर उपस्थित श्रोता भक्ति भाव में तल्लीन हो गए।


आचार्य अनिरुद्ध ने आगे कहा कि गोपियों के घर से केवल माखन चुराया अर्थात सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।


माता-पिता को प्रणाम करते थे कृष्ण
आचार्य अनिरुद्ध शिवानंद ने भागवत कथा में चौथे दिन श्री कृष्ण जन्मोत्सव वर्णन किया। उन्होंने श्री कृष्ण से संस्कार की सीख लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं जानते थे कि वह परमात्मा हैं, उसके बाद भी वह अपने माता-पिता के चरणों को प्रणाम करने में कभी संकोच नहीं करते थे। यह सीख में भगवान श्रीकृष्ण से सभी को लेनी चाहिए। आज की युवा पीढ़ी धन कमाने में लगी है लेकिन अपने कुल, धर्म और मर्यादा का पालन बहुत कम कर रहे हैं।

संतों के आगमन पर होईए खड़े
कथा के दौरान आचार्य अनिरूद्ध ने कहा कि जब भी आपके सामने संत,आचार्य, गुरु सामने आएं तो उनके सम्मान में अपने स्थान से खड़े हो जाए। उन्होंने कहा कि हमे स्कूलों में भी यह बात बताई गई है कि आप किसी की भी सम्मान में खड़े होना चाहिए, यह हमारे संस्कार को दर्शाता है।

