कार्यालय में अचानक एक व्यक्ति प्रवेश करने पर बाॅस पूछता है कि आप हैं कौन श्रीमान?
पूरे वर्ष कहां थे आप?
उसका उत्तर – मैं इस संस्थान में हिन्दी अधिकारी हूं, कार्यालय के साथ देश पर भी भारी हूं।
हिन्दी मैया ने हम पर काफी रहम किया है, साल में बस यही 15 दिन तो हमें श्राद्ध पक्ष की तरह दिखाने के लिए कुछ करने को दिया है।
इन्हीं पखवाड़े में हम द्विभाषी का खेल खेलते हैं और झूठा रिपोर्ट आगे पेलते हैं।
हम कार्यालय में स्वतंत्र हैं, किसी स्थानीय का हम पर कोई दखल नहीं है।
अब तो हमारी खूब चलने लगी है, सीधा मंत्रालय से छनने लगी है।
एक ही रिपोर्ट को कई बार बदल बदल कर बनाते रहते हैं,
द्विभाषी रबर स्टांप और द्विभाषी फार्म एवं अनुवाद का खेल खिलाते रहते हैं।
अधिकारी बोला हे प्रभु, वाकई में आप महान हैं, हिन्दी के भगवान हैं,
आप हिन्दी के प्रभारी ही नहीं, वरन देश पर भी अवश्य भारी हैं।
एस . के . घोष
अधिवक्ता, रायगढ़

