रायगढ़ (सृजन न्यूज़)। जिला न्यायालय रायगढ़ के वरिष्ठ अधिवक्ता एसके घोष का कहना है कि भारत का कानून कहता है कि प्रत्येक अपराध दर्ज होना चाहिए एवं प्रत्येक अपराध का विचारण होना चाहिए। पुलिस को अपराध की सूचना लिखित या मौखिक दी जाती हैं जिसे पुलिस दर्ज करती हैं तो कानून की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती हैं। अक्सर कानून की शक्ति का दुरूपयोग होता हैं, पुलिस को मिथ्या सूचना देकर अपराध दर्ज करवा दिया जाता है। पुलिस को समय सीमा के भीतर अपराध की तहकीकात करना हैं, आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करन हैं तो सवाल हैं कि अब आरोपी को क्या करना चाहिए ?
अधिवक्ता श्री घोष यह भी कहते हैं कि कानून से कभी भी फरार नहीं होना चाहिए बल्कि पुलिस को सहयोग करने की नियत रखना चाहिए। फरार होना का मतलब हैं कि पुलिस यह मानकर चलेगी कि इस आरोपी ने अपराध किया हैं। इसलिए फरार नहीं होना चाहिए और तत्काल जमानत के लिए आवेदन करने से भी बचना चाहिए। जमानत महत्वपूर्ण नहीं हैं बल्कि स्वयं को निर्दोष साबित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। पुलिस के बड़े अधिकारी जैसे पुलिस अधीक्षक को लिखित में ज्ञापन देना चाहिए जिसमें आप किस तरह से निर्दोष हैं। आरोपी को चाहिए कि वह स्वयं को निर्दोष साबित करने वाले तथ्य एवं दस्तावेज के साथ एक ज्ञापन सौंप दें। पुलिस अधीक्षक इस ज्ञापन को विवेचना में तहकीकात में शामिल करने का निर्देश पुलिस थाना एवं अपराध अनुसंधान अधिकारी को दे सकता हैं। इसके साथ ही समाचार पत्रों में भी सूचित करें।
पुलिस ज्ञापन में वर्णित तथ्यों के आधार एवं दस्तावेजो के आधार पर विवेचना करेगी। यदि नहीं करती हैं तो हाई कोर्ट में याचिका पेश कर पुलिस को निर्देर्शित करवाया जा सकता है। इस बात की बहुत संभावना रहती है कि जमानत की आवश्यकता ही नहीं पड़े। यदि आरोपी चाहे तो अग्रिम जमानत का लाभ प्राप्त करने के लिए याचिका पेश कर सकता है।
पुलिस न्यायालय में अभियोग पत्र पेश करती हैं और आरोपी यह पाता हैं कि पूर्व में दिए गए ज्ञापन के आधार पर आरोपी को निर्दोष साबित करने वाले तथ्यों एवं दस्तावेजी सबूतों को दबाकर अभियोग पत्र पेश किया गया हैं तो आरोपी को चाहिए कि आरोप तय होने के पूर्व न्यायालय में ज्ञापन एवं दस्तावेजी साक्ष्यों को पेश कर दे या आवेदन कर दे। न्यायालय में आरोप पर तर्क किए जाते हैं, न्यायालय तय करेगी कि प्रारंभिक तौर पर अपराध गठित होता हैं अथवा नहीं होता हैं। इसके बाद हाई कोर्ट में याचिका पेश कर आरोप को चुनौती दी जा सकती हैं या फिर विचारण की प्रक्रिया के दुरूपयोग को रोकने के लिए याचिका आारोपी की ओर से पेश की जा सकती है। पुलिस अपराध दर्ज करती हैं तो एफआईआर केवल एक कागज हैं जिसके आधार पर विवेचना की जानी हैं। इससे डरना नहीं चाहिए, घबराना नहीं चाहिए, फरार नहीं होना चाहिए, जमानत के लिए जल्दीबाजी नहीं करना चाहिए बल्कि प्रथम प्रयास यह होना चाहिए कि पुलिस को ज्ञापन देकर बताएं कि वास्तविक तथ्य क्या हैं ? पुलिस को दस्तावेजी सबूत देकर बताए कि वास्तविक तथ्य क्या है ? फरार होना और जमानत के प्रयास कोई समाधान नहीं हैं।
न्यायालय में मुकदमा चलता है तो आप पुलिस जांच अधिकारी से सवाल पूछ सकते हैं कि आरोपी ने ज्ञापन में तथ्य बताए थे और सबूत पेश किए थे, इस पर पुलिस ने क्या तहकीकात की हैं ? न्यायालय आपसे पूछेगी कि क्या आप कुछ कहना चाहते हैं तो आप बता सकते हैं कि मैने पुलिस अधीक्षक को अपराधिक घटना के संबंध में तथ्यों एवं सबूतो के साथ ज्ञापन दिया था। यदि आरोपी इतना करता हैं तो बहुत संभावना हैं कि विचारण न्यायालय आपको दोषमुक्त कर दे।